January 23, 2014

ABAP पार्टी

देश में आजकल चुनाव का बुखार था। अखबार राजनीति से जुडी खबरों से पते पड़े थे। "आप " पार्टी कि आजकल तूती  बोल रही थी।  उनकी बारे बस दो ही खबरें नज़र आती। किस तरह (उनके हिसाब से) उन्होंने अपना वादा पूरा किया, और किस तरह (विपक्ष के हिसाब से ) उन्होंने अपने वादा पूरा नहीं किया। लेकिन अगर इन सब से किसी का कद ऊंचा हो रहा था तो अरविन्द भाई साहब का। पार्टी खोल लेने भर से सब जगह उन्ही का नाम, उन्ही कि वाहवाही नजर आ रही थी।  बाकी पार्टी के नेता जो मर्जी करें लेकिन अरविन्द भाई गलत नहीं हो सकते थे। लगता था दूसरी पार्टियों के नेता खीज कर उनके और उनकी पार्टी के खिलाफ अनाप शनाप बोल रहे थे।  लेकिन अरविन्द भाई पर कोई उसका कोई प्रभाव नहीं पड़ता दिखता था।  काश मैं भी किसी पार्टी का नेता होता। …

मन में एक विचार गयी हुई बिजली की तरह कौन्धा ! मैं झट से शौचालय से क्रिया-कलाप समाप्त कर बाहर निकला और अपने दोस्त हरिराम प्रसाद के घर की ओर दौड़ लगाई।  उसका घर बस 3 मकान छोड़ कर ही था।

"अबे हरिया, जल्दी से बाहर आ" , हरिया अभी तक सो ही रहा था।  रविवार के दिन 11 बजे से पहले उठना वो घोर पाप समझता था, और अभी तो केवल सवा 9 ही हुए थे।  4-5 बार दरवाजा पीटने के बाद महाशय बाहर निकले।  "अरे भाई सुबह सुबह किसकी माँ मर गयी?", हरिया जम्भाई लेते हुए बोला।

"चल हरिया, हम भी एक पार्टी बनाकर चुनाव लड़ते हैं!". हरिया ने कुछ पल मेरी बात समझने में लगे, फिर फ़ौरन घर में घुस दरवाजा बंद कर लिया।

"अबे हरिया, बाहर निकल कमीने।"

"मैं नहीं निकलता, आज सुबह सुबह कहाँ से  भांग खाकर आ रहे हो?"

"अरे मेरी बात तो सुन …", मैंने दरवाजा दुबारा पीटना शुरू किया।

कुछ देर कि मशक्कत के बाद हरिया बाहर निकलकर आया, "देखो भाई, तुम्हारी तो शादी के कोई आसार नहीं।  लेकिन मेरी घर वाले ने 2 महीने बाद शादी फिक्स कर रखी है। चाहो तो पाँव पड़ जाता हूँ लेकिन मुझे इस नए बवाल से माफ़ ही करो। "

"अबे तू तो हद्द ही कर रहा है।  यहाँ हमारे शहर को हमारे जैसे युवाओं कि सख्त जरूरत है।  और तुझे शादी करने कि चुल्ल मच रही है ?

"सुन रहे हो इमाम साहब, क्या कह रहे हैं जनाब? शहर के किसी दफ्तर को इन बेरोजगार मियाँ की जरूरत नहीं और ये कहते हैं की पूरे शहर को इनकी जरूरत आन पड़ी है !", हरिया सामने चाय कि दूकान पर बैठे इमाम मोहम्मद शराफत नजाकत अली खान से बोला।

इमाम साहब से मेरी कुछ ख़ास नहीं बनती थी।  वो बैठे हुए, हिंदी अखबार के साथ रविवार को आने वाले अंतरंग में चेहरा गड़ाए हुए थे।  हरिया की बात सुनी और फिर चश्मे से नजरें ऊंची करके मेरी तरफ ऐसे देखा कि जैसे मैंने अभी अभी उनकी बेटी को भगाने का प्लान बताया हो।  चिहुके , "मियाँ का सर फिर गया है, किसी अच्छे अस्पताल में इलाज कराओ।"

"सुन लिया जनाब, अब जाइये घर जाकर कुछ काम धंधा कीजिये। तुम भी यार टॉयलेट में बैठे बैठे रोज नए तिगड़म भिड़ाते रहते हो। "

मैंने हारिये के पैजामे का नाड़ा पकड़ा, तो वो अपने आप मेरे पीछे-पीछे हो लिया। हमने आकर इमाम साहब के अगली सीट पर तशरीफ़ रखी।

"क्यों इमाम साहब, आप ऐसा काहे कह रहे हैं? मैं पार्टी बनाने की बात कर रहा हूँ, बीच महफ़िल में क़त्ल करने की हिमाकत तो नहीं?"

"अमा मियाँ पार्टी बनाना गुड्डे गुड़ियों का खेल है क्या? वो केजरिये को तो पार्टी बनाने से पहले ही आधा हिंदुस्तान जानता था, तुम्हें तो रात को तुम्हारी गली के कुत्ते भी पहचानने से इंकार कर देते हैं।  और तुम्हारी पार्टी में आएगा कौन? ये हरिया, जिसे अपने बीड़ी गांजे से फुर्सत नहीं मिलती, ला हुअल वला क़ुव्वत।या ये कन्हैय्या जो आज कल मोहल्ले की काम वाली के साथ नज़ारे इनायत कर रहा है ?"

मैंने कन्हैय्या कि तरफ देखा। उसका चेहरा उसकी चाय के पतीले से ज्यादा लाल था।  शर्माते हुए दो चाय लाकर हमारे सामने रख दी।

मैंने मन में सोचा, मुझसे से अच्छा तो ये कन्हैय्या ही है। यहाँ हम 25 बरसों में एक कन्या को सम्मोहित नहीं कर पाये, और इस साले ने 5 महीने में तीसरा चक्कर चला लिया। लानत है ऐसी ज़िन्दगी पर।

खुद को सँभालते हुए बोला "अजी इमाम साहब, हिम्मते मर्द तो मर्ददे खुदा" .

हरिया बोला, "भाई मुर्दों की बात ना करो।  यहाँ कल को सड़क पर कोई कुचल जाय तो कफ़न तक के पैसे जेब में नहीं हैं। चुनाव के लिए पैसा क्या FDI से लाओगे ?"

हरिया की बात में दम था, लेकिन बेइज्जती न हो इसलिए काटना भी जरूरी था, "अबे चुनाव लड़ने के लिए पैसे की नहीं अकल कि जरूरत होती है, हरामखोर।  एक बार पार्टी बन गई तो कोई न कोई रईस आ ही जाएगा हमें चंदा देने।वर्ना  उधार लेकर लड़ लेंगे। "

हरिया का चेहरा सुर्ख हो गया।  हमारे ऊपर वैसे ही ५ लोगों का कर्जा था। हमारा क़र्ज़ तो हिमेश रेशमिय़ा के कर्ज़ज़ज़ज़   से भी ज्यादा खौफनाक था।  अब और क़र्ज़ लेने का  मतलब था गरीबी रेखा के नीचे चले जाना।

हरिया का सांप-सुंघा चेहरा देख कर मैंने बात सम्भाली, "लेकिन ऐसा  कुछ नहीं होगा।  जिसका कोई नहीं होता उसका ऊपर वाला होता है। "

हरिया ने पलट ज़वाब दिया , "भाई साहब आप जिस तरह की ऊल-जलूल बात कर रहे हो, उसे सुनकर ऊपर वाला सबसे पहले भाग खड़ा होगा। अबे अगर नेता बनने का इतना ही शौक है तो 'आप' वालों में ही जाकर  घुस जाते हैं ना?"

"नहीं कतई नहीं, उनकी पार्टी में गए तो नेता बनते बनते बाल सफ़ेद हो जायेंगे। उस बिन्नी का क्या किया उन्होंने देखा नहीं तूने? और उनके नेताओं को सुना है कभी ? कहते हैं कि छोटे लोग आम आदमी नहीं होते ? अमीर लोग भी होते हैं।  लगता है जो उनकी पार्टी को सपोर्ट करता है वो आम आदमी है और बाकी सब साले भाजपा के सदस्य हैं।  हम छोटे लोगों कि आवाज बनेंगे एक छोटी सी पार्टी बनाकर। उसमे हर गिरे से गिरा हुआ इंसान शामिल हो पायेगा। "

इमाम साहब से चुप थे, सुनकर बोले, "चलो मान लिया कि गली मोहल्ले के कुछ लुच्चे लफंगे आवारा तुम्हें पार्टी बनाने के लिए मिल जाता हैं। और ये भी मान लिया की मुल्क के लोगों कि अक्ल मेरे घर कि बकरी कि तरह घास चरने चली जाती है, और तुम दो चार सीट जीत भी जाते हो।  लेकिन बिजली, पानी , ईमानदारी तो वो केजरिया ला रहा है।  तरक्की, प्रगति, सुशाशन की बात तो वो मोदी करता है, माँ का सपना पूरा करने की बात कोंग्रेस वाले करते हैं।  तो तुम नया क्या करोगे? "

मैंने ऊंचे स्वर में पलटवार किया, "मेरा मकसद जीतना नहीं, विकल्प देना है!!"

"लेकिन विकल्प तो आप वाले दे रहे हैं?", हरिया बोला।

"अबे जब मोबाइल, कंप्यूटर, गाड़ियों के इतने विकल्प हैं तो पार्टियों में 1 ही विकल्प क्यों? हम AAP का विकल्प देंगे - ABAP"

"ABAP?", हरिया और इमाम एक साथ बोले। कन्हैय्या ने भी पार्टी का नाम सुनकर जूठे गिलास मांजने बंद कर दिए।

मैंने सीना तान कर दोहराया, "हाँ ABAP - Aapki Bhains Aapki Party. हमारी पार्टी का चुनाव चिन्ह भी  भैंस ही होगा।और हमारी पार्टी में सिर्फ वही लोग चुनाव के उमीदवार होंगे जिनके घर में कम से कम एक भैंस होगी। इससे जनता के बीच में ये मेसेज जाएगा की  हम सही में छोटे लोग हैं।  असली मायने में छोटी केटेगरी के आम आदमी।  "

"पार्टी का नाम तो कुछ भी अनाप-शनाप रख लो."

"अनाप शनाप नहीं 'अबाप' ", मैंने इमाम साहब कि बात को काटते हुए कहा।

"हाँ वही. अब चाहे अबाप बोलो या मजाक बोलो। कभी सोचा भी है की तुम्हारी पार्टी चुनाव जीतकर करेगी क्या? कौन से वायदे पूरे करेगी ? कब तक करेगी ?

"इमाम साहब मैं तो आपको वही समझा रहा हूँ।  हमारी पार्टी का मकसद चुनाव जीतना होगा ही नहीं।  हम तो बस विपक्ष में जाकर बैठेंगे !"

"क्या बक रहे हो ?", इमाम साहब ने त्योरियां चढ़ा लीं।

"जी हाँ, विपक्ष में बैठ कर काम करने वालों में खोट निकलने में, उनका मजाक उड़ाने में जो मजा है, वो खुद काम करने में कहाँ है ? और अगर सरकार ने गलती से सही में कुछ ज्यादा ही अच्छा काम कर लिया तो जनता के मूड को भांपते हुए हम सरकार की बी-टीम बन जायेंगे। "

"तो जनाब, अगर आपको अपना उल्लू ही सीधा करना है तो निर्दलिय ही खड़े क्यों नहीं हो जाते? ये पार्टी के चोंचलों में क्यों पड़ते हो ?"

"इमाम साहब आप भी नौसिखियों सी बातें करते हो।  निर्दलिय जीता भी तो एक ही जगह जीतूंगा। उसमे मेरी औकात ही क्या रहेगी ? कहीं से 8-10 सीटें हाथ लग गयी तो हमारा भी भला और जनता का भी भला।  आप बस ये बताओ की हमारी पार्टी का समर्थन करोगे या नहीं ?"

इमाम साहब इससे पहले मुँह खोलते, उनकी साहब-जादी खाने के लिए बुलाने आ गयी। उम्र लगभग मेरे ही बराबर होगी। आज पीले रंग के सूट में गजब ही धा रही थी।लगता था बस अभी-अभी नहा धो कर ही आ रही थी। अगर ऐसी उमीदवार मेरी पार्टी को मिल जाए तो इस देश के क्या, दुसरे देशों के भी चुनाव जीत जाऊं।

जब मैं उस असीम सुंदरता को अपनी इंद्रियों में कैद कर रहा था, असीम सुंदरता के अब्बा मुझ पर ही गौर फार्म रहे थे।

"ला हॉल विला कुव्वत!  तुम जैसे नामुरादों को समर्थन देने से अच्छा मैं अपना समर्थन गंदे नाले में डालना ज्यादा पसंद करूँगा।रखो तुम अपनी भैंस और अपनी पार्टी अपने पास", कहकर वो उठ खड़े हुए।उनकी बेटी ने एक नजर मुझे दया-दृष्टि से देखा और फिर उनके पीछे हो ली।

 मैंने पलटकर देखा तो हरिया कब का खिसक लिया था। अब बस कन्हैय्या ही बचा था।

"तेरी क्या राय है कन्हैय्या?", थक हारकर मैंने पूछा।

"राय जाय तेल लेने। मुझे बस 18  रूपये दे दो "

"18 रूपये? लेकिन हमने तो दो ही चाय ली थी। "

"हाँ इमाम साहब ने अपनी चाय के पैसे नहीं दिए।"

मन में सोचा इसी बहाने कंजूस इमाम पर रौब डालने का मौका मिल जाएगा। मगर पार्टी बनाने का प्लान फिलहाल कुछ दिन टालना ही पड़ेगा। मैंने उनके भी 6 रूपये कन्हैय्या को दिए और अपने घर की ओर वापस चलता बना।

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