November 16, 2019

भाषा में मिलावट बंद कीजिये

बहुत दिन हुए हिंदी  लिखे हुए, तो आज सोचा हिंदी में लिखा जाए।  और ये जरूरी भी है की कभी कभी अपनी भाषा में लिखा जाए।  आज हम हिंदी का एक वाक्य भी बिना अंग्रेजी के शब्द जोड़े नहीं बोल सकते।  दो वाक्य  हिंदी के बोलके अंग्रेजी पर लौट जाते हैं। और कई बार अपनी बोली में हिंदी ( या कहें हिंदुस्तानी ) का सही शब्द ही नहीं ढूँढ पाते और मजबूरन अंग्रेजी के लफ्ज़ घुसाने ही पड़ते हैं। हमारी भाषा ऐसी हो गई है जैसे धोबी का कुत्ता - ना घर का ना घाट का। मैं क्योंकि हिंदी का जानकार हूँ तो इसी पर लिखूंगा, लेकिन मुझे पूरा यकीन है की यही हाल भारत की अन्य भाषाओँ का भी है।  

मैंने खुद से पढ़ना लिखना ही हिंदी के कॉमिक्स और अखबार पढ़के सीखा था।  लेकिन धीरे-धीरे अंग्रेजी पर जोर पड़ता गया और खासकर दसवीं के बाद हिंदी कहीं पीछे छूटती गई।  आज भी कभी-कभी शायरी हिंदी/उर्दू में कर  लेता हूँ, लेकिन वही अंग्रेजी के 'टूल्स' का सहारा लेके ( ये लेख भी उन्ही उपकरणों का सहारा लेके लिख रहा हूँ )।  आज आलम ये है की कोई हिंदी में २ शब्द लिखने को कह दे  तो शायद सही से ना लिख सकूं।  आप लोग जो इसे पढ़ रहे होंगे उन्हें भी थोड़ा समय लग रहा होगा, इसे पढ़ने भी।  हम अंग्रेजी के आदि ही इतना हो गए हैं।  अंग्रेजी हमारे जीवन के हर हिस्से में घर कर गई है।  हमारा स्मार्टफोन, हमारे लैपटॉप के कीबोर्ड भी अंग्रेजी में ही होते हैं, तो स्वाभाविक है की ज्यादातर हम अंग्रेजी ही  लिखेंगे और पढ़ेंगे।  

मगर सवाल ये है की ऐसा क्यों ? क्या इसके  लिए अंग्रेजी ज़िम्मेदार है या हमारा समाज जो हिंदी पर इतना जोर देता है ? मेरा मानना है की इसके लिए  हम खुद  ज़िम्मेदार हैं।  मुझे अंग्रेजी से कोई अप्पति नहीं , अंग्रेजी आज की जरूरत है और इसे कोई झुठला नहीं सकता।  लेकिन क्या हमें अपनी भाषा पर इतना भी पकड़ नहीं रही की अपनी मातृभाषा (फिर वो चाहे हिंदी हो या कोई और भारतीय भाषा ) में कुछ वाक्य बिना 'मिलावाट' के लिख या बोल सकें ? 

अभी कुछ समय पहले हमारे गृह मंत्री का बयान आया की हिंदी ही देश को जोड़ सकती है।  इस पर काफी कोहराम भी मचा।  मैं इस बात से पूरी तरह सहमत नहीं। अगर बात जोड़ने की ही है तो हिंदी से ज्यादा अंग्रेजी ये काम बेहतर ढंग से कर सकती है।  ये बात सही है की हिंदी का प्रचार-प्रसार होना चाहिए।  अगर ज्यादा से ज्यादा हम भारतीय हिंदी बोलेंगे तो एक दूसरे को समझने में और सहायता होगी।  लेकिन अगर गैर हिंदी भाषियों से अगर ये आशा रखी जाए तो क्या हमारा ये फ़र्ज़ नहीं की हम भी उनकी भाषाओँ और बोलियों को और ज्यादा अपनाएँ ? दक्षिण राज्यों में तो कई जगह कुछ हद तक हिंदी सिखाई जाती है, लेकिन उत्तर के राज्यों में हम कितना मराठी, तेलुगु या बंगाली सीखते हैं ? 

अगर उद्देश्य देश को  जोड़ने का है तो सारी भारतीय भाषाओं में इतना दम है की वो ये काम अच्छे से कर सकें।  लेकिन अंग्रेजी या देश की दूसरी भाषा को सीखने से पहले क्या ये जरूरी नहीं की हम अपनी खुद की बोली और भाषा को सम्मान दें ? अंग्रेजी बोलिये लेकिन जब जरूरत और समय हो, वर्ना यकीन मानिये हिंदुस्तानी बहुत अच्छी लगती है लिखने और बोलने में।  

तो अगर आप ये पढ़ रहे हैं तो कोशिश कीजिये कभी-कभी अपनी भाषा में भी लिखये बोलिये और पढ़िए। और कोशिश करें कि  मिलावटी भाषा से बचें।  जब हिंदी में लिखें  तो केवल हिंदी और जब अंग्रेजी में लिखें तो केवल अंग्रेजी।  इससे दोनों भाषाओं का सम्मान होगा। थोड़ा मुश्किल लगेगा शुरू में, लेकिन थोड़ा सा ध्यान लगाने पर ये अवश्य किया जा सकता है।  मैं भी आज से कोशिश करूँगा।  

2 comments:


  1. सर्वप्रथम, बधाई!, कि एक अंतराल के बाद आपने फिर लिखना शुरू किया है, जो लेखक और पाठकों, दोनो के लिए फिर से मिले नए जीवन जैसा है।

    बात आपके लेख की करें तो, शब्द और उनमे छिपी सोच को मैं 'सुंदर' कहूँगी।
    पर यही हिन्दी भाषा का सौंदर्य है कि यह कभी बहुत सहज और सरल लगती है, तो कभी बहुत कठिन।
    बस आवश्यक यही है कि,
    बाहरी दिखावा जो क्षणिक उमंग देता है, उस को साथ रखते हुए हम अपनी मात्रभाषा की गरिमा न भंग करें न ही भूलें,

    क्योंकि, ऐसी संस्कृति और भाषा का उत्तम भंडार कम ही देशों के पास है।


    पुन: कहूँगी,

    लिखते रहिए...



    ... अक्षिता।

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    1. आपकी हिदायत का ख्याल रखूँगा। धन्यवाद।

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