July 31, 2012

ज़िन्दगी - एक ट्रेन

तेरे बिना ये ज़िन्दगी, वो ट्रेन का डिब्बा है लगता,
जिस पर बिन सोचे-समझे मैं चढ़ तो गया,
पर अब आगे जाने का मन नहीं करता,
आखिर हमसफ़र के बिना हम सफ़र करके करेंगे भी क्या?

राह में कई मिले अब तक,
बहुत से बुरे तो कुछ भले भी,
जो कुछ ऐसे मिले भी,
जिन्हें दिल ने रोकने की कोशिश की,
मन किया ले चलें अपने साथ, 
ये ट्रेन ले जाए जहाँ कहीं भी,
पर देखिये किस्मत हमारी ऐसी,
उन्हें उनकी मंजिल पहले ही पता थी.

क्या पता अगले स्टेशन पर कहीं तू मिल जाए,
बस यही आस लिए हैं बैठे,
वर्ना यहाँ कुछ नहीं है रखा,
हम तो कब के कूद चुके होते.

कभी सोच सहम जाता हूँ,
आँखें तुझे खिड़की के बाहर ही ढूंढती रह जाएँ,
और तो पिछली सीट पर ही बैठा हो,
और ट्रेन अपने मुकाम तक पहुँच जाए,
जब तक मुझे इसका एहसास हो.

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