घर पहुँचने में देर हो चुकी थी। गुड़िया वहाँ परेशान हो रही होगी, उसने ही तो मुझे पठाखे लाने के लिए भेजा था। खुद भी आना चाहती थी लेकिन उसे गोद में लेकर पूरा बाजार घूमने के झंझट से बचने के लिए मैंने ही मना कर दिया। अब दीवाली के दिन तो कोई न कोई मिल ही जाता है। फिर उनसे दो घडी बात न करो तो वो भी बुरा मान जाते हैं। बस यही करते-करते दो घंटे बीत चुके थे। अब घर पहुँच कर मेरी शामत ही थी। मिसेज़ जी तो आज गला ही दबा देंगी।पिछले एक घंटे में 3 बार कॉल कर चुकी थी।घर पर मेहमान आ रहे थे और मैं यहाँ बाजार-हाट ही कर रहा हूँ। आखिर मैंने ये सब खरीदारी कल ही क्योँ न ख़त्म कर ली।उफ़...
यही सब सोचता हुआ मैं तेजी से बाजार कि तंग गालियां से होता हुआ घर को भागा जा रहा था।गलियोँ में तो आज मानो सारा संसार ही उमड़ आया था।अगर यहाँ जरा भी भगदड़ मच जाए तो लेने के देने पड़ जाएँ।मुझे एहसास हुआ कि लेट-लतीफी का शिकार मैं ही नहीं, पूरा इलाका था !
ठाकुर साहब दिवाली मुबारक हो! अपना पान तो लेते जाईये ! - लाला साहब पान वाले ने मुझे गली के दूसरे छोर से अपने खोखे में बैठे-बैठे ही आवाज दी।
नहीं लाला साहब आज घर पर बहुत मार पड़ने वाली है, मुझे इजाजत दीजिये। कल आता हूँ - मैं भी सलाम ठोक कर आगे बढ़ गया।
लाला साहब मन मसोस कर रह गए।लगता था आज उनकी दुकान बहुत ज्यादा नहीं चली थी।
आज कॉलोनी देखते ही बनती थी। लोगों ने कितने प्यार से अपने घरों को सजाया था।किसी ने बल्बों कि लड़ियाँ तो किसी ने फूलों कि माला से अपना घर पाट ही दिया था।और अब जैसे जैसे सूरज देवता विदा होने लगे थे, वैसे वैसे आकाश में आतिशबाजियों का सिलसिला शुरू होता जा रहा था। वाह! क्या खुशनुमा दिन था। लोगों के चेहरे पर कितनी ख़ुशी थी।अपने अपने दुखों को भुला कर कितने प्यार से एक-दूसरे से गले मिल रहे थे।ये दिन रोज ही क्यों नहीं आता?
साहब! - मैं सड़क पार करने की कोशिश में जुटा था कि तभी किसी ने मुझे आवाज दी।मैंने पीछे मुड़कर देखा तो एक 9-10 साल का लड़का मेरी तरफ देख रहा था। मैले कुचले फटे से कपडे , नंगे पाँव, धूल से सना बदन, बिखरे लम्बे बाल। दीवाली के दिन तो ऐसे लोगों को दुनिया से ओझल ही हो जाना चाहिए। मैंने जुन्झुला कर पूछा - क्या है ?
लड़का कुछ सोच में पड़ गया।मुझसे रहा नहीं गया - देख लड़के अगर तुझे पैसे चाहिए तो ये ले पांच रूपये और दफा हो। मेरी बेटी घर पर मेरा इन्तेजार कर रही है, मेरा पिंड छोड़।
इतना कह कर मैंने पांच रूपये का एक सिक्का उसकी तरफ फेंक दिया।लड़के ने जमीन से सिक्का उठाया और मुझे वापस कर दिया।
साहब मुझे पैसे नहीं चाहिए, हो सके तो कुछ खरीद कर खिला दीजिये। आज पूरे दिन से कुछ नहीं खाया।
भाई, तो एक काम कर तू ये 50 रूपये का नोट ले और खुद ही कुछ खरीद कर खा लियो।
नहीं साहब, मैं ये रूपये नहीं ले सकता। वो पीछे वो बब्बन खड़ा है न पीछे, वो मुझसे ये पैसे छीन लेगा।आप ही कुछ खरीद कर खिला दीजिये साहब।- लड़के ने मुझे क़तर नज़रों से देखा।
मैंने पीछे देखा तो एक करीब 16 - 17 साल का लड़का कुछ और लड़कों के साथ खड़ा हमारी और ही देख रहा था।
कौन है ये बब्बन? - मुझे देर तो हो रही थी लेकिन मैं फंस चुका था।
साहब, इसके बाबू मेरे चाचा लगते हैं। मैं इन्ही के परिवार के साथ वो स्टेशन के पीछे जुग्गी - झोपड़ियों में रहता हूँ। दिन भर कूड़ा करकट उठा कर शाम को किसी कबाड़ कि दूकान पर बेच देते हैं, तो उसी से 30-50 रूपये कि कमाई हो जाती है।लेकिन ये बब्बन हमेशा मेरे आधे पैसे छीन लेता है।आज तो कुछ कमाई भी नहीं हुई, और भूख से मरा जा रहा हूँ। कुछ खिला दो न साहब।
मैंने घडी कि तरफ देखा।7 लगभग बज ही चुके थे।लेकिन आज दीवाली के दिन किसी कि हाय लेना भी ठीक नहीं था।मैं उसे बगल के एक ढाबे पर ले गया।
आर्डर लेने के लिए एक अधेड़ महाशय पधारे। लड़के को देखते ही आग बबूला हो गए - ओये तू क्या यहाँ कर रहा है ? चल भाग यहाँ से हरामी सूयर।
तमीज से बात करो। ये मेरे साथ है - मैंने आवाज ऊंची करके कहा।
महाशय सकते में आ गए - लेकिन ...
लेकिन वेकिन कुछ नहीं , एक काम कीजिये एक वेज़ थाली और एक कप चाय जल्दी ले आईये। - महाशय आँखें तरेरते हुए चले गए।
हाँ भाई, तो तेरे माता पिता कहाँ हैं ? - मैंने समय काटने के लिए पुछा।
बाबूजी तो बहुत पहले ही चल बसे थे। बस माँ हैं मेरे गाँव में, लेकिन वो भी अक्सर बीमार ही रहती हैं। डॉक्टर कहते हैं कि वो भी ज्यादा दिन नहीं बचेंगी। तो माँ ने मुझे यहाँ पढ़ने लिखने के लिए जबर्दस्ती चाचा के परिवार के साथ दिल्ली भेज दिया।
इतने में खाना आ गया।खाना कोई और ही ले कर आया, महाशय ने आना ठीक नहीं समझा। लड़के कि तरफ थाली कर मैं अपनी चाय पीने लगा। लड़का कुछ सकुचाया। मैंने पूछे - अब खाता क्यों नहीं?
जी - कह कर वो धीरे धीरे रोटी का निवाला मुंह में डालने लगा। पहले निवाला अभी मुंह में गया ही था कि लड़का सिसकने लगा।
क्या हुआ? रो क्यों रहा है ?
कुछ नहीं साहब। मैंने आज तक कभी भीख नहीं मांगी।गाँव में गरीब होते हुए भी हमेशा माँ ने मुझे रोटी खिलायी है। मगर आज सबह से कुछ नहीं खाया, बहुत भूख लग रही है।मुझे माँ के पास जाना है - इतना कह कर लड़का जोर - जोर से रोने लगा।
मैंने उसे चुप कराने की कोशिश की, लेकिन वो माँ के पास जाने कि ही रट लगाये हुए था।फिर बड़ी मशक्कत के बाद मैंने किसी तरह उसे चुप करा कर, खाना खाने को कहा।
माँ ने चाचा चाची के साथ यह सोच कर भेजा था कि 8-10 तक पढ़कर कोई नौकरी कर लूंगा यहाँ। लेकिन चाचा तो यहाँ सुध भी नहीं लेते।पढ़ना-लिखना तो दूर यहाँ खाना तक मिलना दूभर हो जाता है। ऊपर से वो बब्बन मेरे पैसे मुझसे छीन लेता है। वो तो चोरी भी करता है अपने दोस्तों के साथ मिलकर। लेकिन चाचा उसी कि तरफदारी करते हैं।मुझे माँ के पास जाना है।
लगता था मानो उसे खाने कि नहीं, किसी के कानो कि जरूरत थी, जिसे वो अपनी कहानी, अपन दर्द सुना सके। मैंने कुछ भी बोलना मुनासिब नहीं समझा।लड़के ने खाना ख़त्म किया और पानी पीकर उठ खड़ा हुआ।
और कुछ नहीं लेगा?
नहीं साहब, बस।
चल भाई फिर अब घर को चलें। - मैंने काउंटर पर जा कर हिसाब चुकता किया और साथ ही उन महाशय को तमीज कि तामील भी मुफ्त दे आया।
और तेरा नाम क्या है?
साहब केसुआ।
केसुआ?
माँ ने नाम केशव कुमार रखा था, यहाँ सब केसुआ ही बुलाते हैं।
अच्छा भाई केशव , अब तू अपना रास्ता पकड़, मैं पाना अपना रास्ता नापता हूँ। - इतना कह कर मैंने उसे रवाना किया।
कुछ दूर पहुंचा ही था कि वो फिर सामने आ गया।
साहब मैं भीख नहीं लेता साहब। अगर आपके घर में साफ़ सफ़ाई के लिए कोई जरूरत हो तो मुझे बुला लेना साहब। वर्ना मैं पैसे जोड़कर आपको 40 रूपये दे जाऊँगा। आप अपना घर बता दो साहब। - मैं लड़के की स्वाभिमानिता देख कर दंग रह गया।
भाई मेरे घर में तो ऐसा कोई काम नहीं है, और तुझे पैसे देने कि भी कोई जरूरत नहीं है। फिर भी घर जरूरत पड़े तो मेरा घर अगली गली मैं चौथे नंबर पर है।
ठीक है साहब, भगवान् आपको खूब तरक्की दे साहब।- कह कर लड़का दूसरी और मुड़ गया।
मैं उसे जाता हुआ कुछ देर देखता रहा, और फिर अपने घर कि ओर चल पड़ा।
रात हो चुकी थी। मोहल्ले में पटाखों और आतिशबाजियों का दौर शुरू हो चुका था, लेकिन मेरे अंदर कुछ और ही चल रहा था। हमें ईश्वर ने क्या नहीं दिया लेकिन फिर भी हम छोटी छोटी बातों को लेकर परेशान रहते हैं। जरा जरा सी बात पर एक दुसरे से सालों तक बात नहीं करते। और यहाँ ये लड़का अपनी माँ से मिलने के लिए मरा जा रहा है।अपने पिता का चेहरा तक याद नहीं है।पढ़ना चाहता है लेकिन खाने तक के पैसे नहीं हैं।
मैं घर पहुंचा तो गुड़िया गेट पर ही बैठी थी। मुझे देखते ही चहक उठी। सामान रख कर मैंने उसे गोद में भर लिया।कम से कम मेरी गुड़िया के पास तो उसके पिता थे।
यही सब सोचता हुआ मैं तेजी से बाजार कि तंग गालियां से होता हुआ घर को भागा जा रहा था।गलियोँ में तो आज मानो सारा संसार ही उमड़ आया था।अगर यहाँ जरा भी भगदड़ मच जाए तो लेने के देने पड़ जाएँ।मुझे एहसास हुआ कि लेट-लतीफी का शिकार मैं ही नहीं, पूरा इलाका था !
ठाकुर साहब दिवाली मुबारक हो! अपना पान तो लेते जाईये ! - लाला साहब पान वाले ने मुझे गली के दूसरे छोर से अपने खोखे में बैठे-बैठे ही आवाज दी।
नहीं लाला साहब आज घर पर बहुत मार पड़ने वाली है, मुझे इजाजत दीजिये। कल आता हूँ - मैं भी सलाम ठोक कर आगे बढ़ गया।
लाला साहब मन मसोस कर रह गए।लगता था आज उनकी दुकान बहुत ज्यादा नहीं चली थी।
आज कॉलोनी देखते ही बनती थी। लोगों ने कितने प्यार से अपने घरों को सजाया था।किसी ने बल्बों कि लड़ियाँ तो किसी ने फूलों कि माला से अपना घर पाट ही दिया था।और अब जैसे जैसे सूरज देवता विदा होने लगे थे, वैसे वैसे आकाश में आतिशबाजियों का सिलसिला शुरू होता जा रहा था। वाह! क्या खुशनुमा दिन था। लोगों के चेहरे पर कितनी ख़ुशी थी।अपने अपने दुखों को भुला कर कितने प्यार से एक-दूसरे से गले मिल रहे थे।ये दिन रोज ही क्यों नहीं आता?
साहब! - मैं सड़क पार करने की कोशिश में जुटा था कि तभी किसी ने मुझे आवाज दी।मैंने पीछे मुड़कर देखा तो एक 9-10 साल का लड़का मेरी तरफ देख रहा था। मैले कुचले फटे से कपडे , नंगे पाँव, धूल से सना बदन, बिखरे लम्बे बाल। दीवाली के दिन तो ऐसे लोगों को दुनिया से ओझल ही हो जाना चाहिए। मैंने जुन्झुला कर पूछा - क्या है ?
लड़का कुछ सोच में पड़ गया।मुझसे रहा नहीं गया - देख लड़के अगर तुझे पैसे चाहिए तो ये ले पांच रूपये और दफा हो। मेरी बेटी घर पर मेरा इन्तेजार कर रही है, मेरा पिंड छोड़।
इतना कह कर मैंने पांच रूपये का एक सिक्का उसकी तरफ फेंक दिया।लड़के ने जमीन से सिक्का उठाया और मुझे वापस कर दिया।
साहब मुझे पैसे नहीं चाहिए, हो सके तो कुछ खरीद कर खिला दीजिये। आज पूरे दिन से कुछ नहीं खाया।
भाई, तो एक काम कर तू ये 50 रूपये का नोट ले और खुद ही कुछ खरीद कर खा लियो।
नहीं साहब, मैं ये रूपये नहीं ले सकता। वो पीछे वो बब्बन खड़ा है न पीछे, वो मुझसे ये पैसे छीन लेगा।आप ही कुछ खरीद कर खिला दीजिये साहब।- लड़के ने मुझे क़तर नज़रों से देखा।
मैंने पीछे देखा तो एक करीब 16 - 17 साल का लड़का कुछ और लड़कों के साथ खड़ा हमारी और ही देख रहा था।
कौन है ये बब्बन? - मुझे देर तो हो रही थी लेकिन मैं फंस चुका था।
साहब, इसके बाबू मेरे चाचा लगते हैं। मैं इन्ही के परिवार के साथ वो स्टेशन के पीछे जुग्गी - झोपड़ियों में रहता हूँ। दिन भर कूड़ा करकट उठा कर शाम को किसी कबाड़ कि दूकान पर बेच देते हैं, तो उसी से 30-50 रूपये कि कमाई हो जाती है।लेकिन ये बब्बन हमेशा मेरे आधे पैसे छीन लेता है।आज तो कुछ कमाई भी नहीं हुई, और भूख से मरा जा रहा हूँ। कुछ खिला दो न साहब।
मैंने घडी कि तरफ देखा।7 लगभग बज ही चुके थे।लेकिन आज दीवाली के दिन किसी कि हाय लेना भी ठीक नहीं था।मैं उसे बगल के एक ढाबे पर ले गया।
आर्डर लेने के लिए एक अधेड़ महाशय पधारे। लड़के को देखते ही आग बबूला हो गए - ओये तू क्या यहाँ कर रहा है ? चल भाग यहाँ से हरामी सूयर।
तमीज से बात करो। ये मेरे साथ है - मैंने आवाज ऊंची करके कहा।
महाशय सकते में आ गए - लेकिन ...
लेकिन वेकिन कुछ नहीं , एक काम कीजिये एक वेज़ थाली और एक कप चाय जल्दी ले आईये। - महाशय आँखें तरेरते हुए चले गए।
हाँ भाई, तो तेरे माता पिता कहाँ हैं ? - मैंने समय काटने के लिए पुछा।
बाबूजी तो बहुत पहले ही चल बसे थे। बस माँ हैं मेरे गाँव में, लेकिन वो भी अक्सर बीमार ही रहती हैं। डॉक्टर कहते हैं कि वो भी ज्यादा दिन नहीं बचेंगी। तो माँ ने मुझे यहाँ पढ़ने लिखने के लिए जबर्दस्ती चाचा के परिवार के साथ दिल्ली भेज दिया।
इतने में खाना आ गया।खाना कोई और ही ले कर आया, महाशय ने आना ठीक नहीं समझा। लड़के कि तरफ थाली कर मैं अपनी चाय पीने लगा। लड़का कुछ सकुचाया। मैंने पूछे - अब खाता क्यों नहीं?
जी - कह कर वो धीरे धीरे रोटी का निवाला मुंह में डालने लगा। पहले निवाला अभी मुंह में गया ही था कि लड़का सिसकने लगा।
क्या हुआ? रो क्यों रहा है ?
कुछ नहीं साहब। मैंने आज तक कभी भीख नहीं मांगी।गाँव में गरीब होते हुए भी हमेशा माँ ने मुझे रोटी खिलायी है। मगर आज सबह से कुछ नहीं खाया, बहुत भूख लग रही है।मुझे माँ के पास जाना है - इतना कह कर लड़का जोर - जोर से रोने लगा।
मैंने उसे चुप कराने की कोशिश की, लेकिन वो माँ के पास जाने कि ही रट लगाये हुए था।फिर बड़ी मशक्कत के बाद मैंने किसी तरह उसे चुप करा कर, खाना खाने को कहा।
माँ ने चाचा चाची के साथ यह सोच कर भेजा था कि 8-10 तक पढ़कर कोई नौकरी कर लूंगा यहाँ। लेकिन चाचा तो यहाँ सुध भी नहीं लेते।पढ़ना-लिखना तो दूर यहाँ खाना तक मिलना दूभर हो जाता है। ऊपर से वो बब्बन मेरे पैसे मुझसे छीन लेता है। वो तो चोरी भी करता है अपने दोस्तों के साथ मिलकर। लेकिन चाचा उसी कि तरफदारी करते हैं।मुझे माँ के पास जाना है।
लगता था मानो उसे खाने कि नहीं, किसी के कानो कि जरूरत थी, जिसे वो अपनी कहानी, अपन दर्द सुना सके। मैंने कुछ भी बोलना मुनासिब नहीं समझा।लड़के ने खाना ख़त्म किया और पानी पीकर उठ खड़ा हुआ।
और कुछ नहीं लेगा?
नहीं साहब, बस।
चल भाई फिर अब घर को चलें। - मैंने काउंटर पर जा कर हिसाब चुकता किया और साथ ही उन महाशय को तमीज कि तामील भी मुफ्त दे आया।
और तेरा नाम क्या है?
साहब केसुआ।
केसुआ?
माँ ने नाम केशव कुमार रखा था, यहाँ सब केसुआ ही बुलाते हैं।
अच्छा भाई केशव , अब तू अपना रास्ता पकड़, मैं पाना अपना रास्ता नापता हूँ। - इतना कह कर मैंने उसे रवाना किया।
कुछ दूर पहुंचा ही था कि वो फिर सामने आ गया।
साहब मैं भीख नहीं लेता साहब। अगर आपके घर में साफ़ सफ़ाई के लिए कोई जरूरत हो तो मुझे बुला लेना साहब। वर्ना मैं पैसे जोड़कर आपको 40 रूपये दे जाऊँगा। आप अपना घर बता दो साहब। - मैं लड़के की स्वाभिमानिता देख कर दंग रह गया।
भाई मेरे घर में तो ऐसा कोई काम नहीं है, और तुझे पैसे देने कि भी कोई जरूरत नहीं है। फिर भी घर जरूरत पड़े तो मेरा घर अगली गली मैं चौथे नंबर पर है।
ठीक है साहब, भगवान् आपको खूब तरक्की दे साहब।- कह कर लड़का दूसरी और मुड़ गया।
मैं उसे जाता हुआ कुछ देर देखता रहा, और फिर अपने घर कि ओर चल पड़ा।
रात हो चुकी थी। मोहल्ले में पटाखों और आतिशबाजियों का दौर शुरू हो चुका था, लेकिन मेरे अंदर कुछ और ही चल रहा था। हमें ईश्वर ने क्या नहीं दिया लेकिन फिर भी हम छोटी छोटी बातों को लेकर परेशान रहते हैं। जरा जरा सी बात पर एक दुसरे से सालों तक बात नहीं करते। और यहाँ ये लड़का अपनी माँ से मिलने के लिए मरा जा रहा है।अपने पिता का चेहरा तक याद नहीं है।पढ़ना चाहता है लेकिन खाने तक के पैसे नहीं हैं।
मैं घर पहुंचा तो गुड़िया गेट पर ही बैठी थी। मुझे देखते ही चहक उठी। सामान रख कर मैंने उसे गोद में भर लिया।कम से कम मेरी गुड़िया के पास तो उसके पिता थे।
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