September 11, 2014

जन्मदिन मुबारक हो बेटा

सुबह के 5 बजकर 53 मिनट हो रहे थे। रेहान कि नींद टूटती है।   दिल बहुत तेज धड़क रहा था।  आज ये लगातार सत्रहवाँ दिन था। कमरे में घुप अँधेरा था, ऊपर चलते पंखे से आवाज आ रही थी।  दूर कमरे के एक कोने में पड़े मोबाइल से हलकी टिमटिमाती रौशनी आ रही थी।

रेहान उठा और धीरे धीरे हाथ टटोलते हुए अपने मोबाइल की ओर बढ़ा। 16 मेसेज और 21 मिस काल्स। सारी रात काल्स आते रहे उसे , लेकिन उसे पता ही नहीं चला। या शायद जान-बूझकर ...

"हैप्पी बर्थडे रेहान!! गॉड ब्लेस यू डियर ", पहला मेसेज। आज रेहान का जन्मदिन था, पर उसे किसी बात की खुशी नहीं थी . वो आगे के सारे मेसेज बिना पढ़े मिटा देता है, और कमरे से सटे बाथरूम की ओर बढ़ जाता है।  गुनगुने पानी का एक निवाला मुँह में डालते ही, कफ्फ गिरना शुरू हो जाता है।  दर्द बहुत ज्यादा थ।  रेहान को लगा आज आंते ही बाहर निकल आएँगी।

"जन्मदिन मुबारक हो रेहान ", वो शीशे को देखकर मुस्कुराया।  गला जल रहा था, आँखें भर आई थीं। आज ये लगातार सत्रहवाँ दिन था।  "नहीं आज नहीं।  आज जन्मदिन है तेरा। " नलके से पानी तेज कर, अपने मुँह पर ठन्डे पानी की 8 -10 छीटें मारता है, और बाथरूम से निकल जाता है।

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9 बजकर 16 मिनट।  अलग अलग नंबरों से लगातार कॉल आ रहे थे।  मगर रेहान मोबाइल सामने टेबल पर रखकर उसे बजता हुआ निहार रहा था बस।  उसका आज किसी से बात करने का मन नहीं था।

"क्यों चाहते हो मुझे इतना? अकेला क्यों नहीं छोड़ देते मरने के लिए मुझे ", वो  एकदम से झल्लाया, और मोबाइल पकड़ कर सामने दिवार पर मारने की कोशिश की।  पर हाथ रुक गए।  उसे बस किसी एक के फोन का इन्तेज़ार था।  अगर फोन टूट गया तो वो कॉल  नहीं कर पायेगा।

वो थककर बैठ जाता है।  17 दिन से नींद पूरी नहीं हो रही थी।  पूरा शरीर दर्द कर रहा था।  लेकिन जैसे ही आँख बंद करता कुछ अजीब डरावने ख्याल आने लगते मन में।  वो सोना चाहता था, लेकिन उसका खुद का दिमाग उसे सोने नहीं दे रहा था।  शायद वो पागल हो रहा था, पर उसे खुद नहीं पता था कि ऐसा क्या हो गया है उसे।  किसी को पकड़कर थोड़ी देर सोना चाहता था, ताकी डर  ना लगे।  पर किसी से मदद भी नहीं  माँगना चाहता था। काश बिना बताये लोग दर्द समझ पाते।

माँ की याद आ रही थी।  पर माँ नहीं आ सकती थी।  कभी नहीं।  रेहान कुर्सी से फिसलकर नीचे फर्श पर आ गिरता है। फर्श ठंडा था, करहाते दिमाग को थोड़ी राहत मिली। साँसे कुछ मद्धम पड़ीं। फोन अभी भी बज रहा था।  वो आँखें बंद कर लेता है।

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रेहान एकदम से चौंक कर उठ जाता है।  चारों तरफ देखता  है, पर कोई नहीं था।  शायद उसने कोई बुरा सपना देखा था।  "महफूज़, महफूज़ ..."

सामने घड़ी में 1 बजकर 8 मिनट हो रहे थे।  फोन फिर बजा।  रेहान लपक कर टेबल पर पड़ा फोन उठा लेता है।  फोन उसी का था।

"हेल्लो, हेल्लो यासीर"

"हद कर दी मियाँ तुमने तो आज। पिछले एक घंटे में कम से कम बीसों बार फोन मिल चूका हूँ।  मैं तो बस अब तुम्हारे घर ही निकलने लगा था, चिंता में।  किसके जनाजे में शामिल थे? "

"नहीं। बस ..."

"ओह... अभी भी आराम नहीं है?"

"नहीं"

"तो डॉक्टर को क्यों नहीं दिखा रहे यार। कितनी बार बोल चूका हूँ। ऐसे तो मर ही जाओगे सच में।"

"हाँ वही चाहिए। खुद की जान तो नहीं ले सकता मैं।  ऐसे ही मर जाऊं तो अच्छा है। ".

"यार कुछ भी अनाप शनाप बकते हो। जन्मदिन वाले दिन भी कोई ऐसी बातें करता है?"

"बस अब जीने की तमन्ना नहीं रही यासीर".

"बस तुम अब चुप ही रहो। सुनो गोहल चौक के बस स्टॉप पर मिलो एक घंटे में".

"हाँ ठीक है। "

"हौसला रखो दोस्त। तुम्हे मरने नहीं दूँगा इतनी आसानी से। और हाँ एक बात और ... जन्मदिन बहुत बहुत मुबारक हो। "

"शुक्रिया यार".

"चलो, अब जल्दी से तैयार होके पहुँचो . "

रेहान को थोडा सुकून महसूस हुआ।  बस एक यासीर ही उसको समझ सकता था।  फोन टेबल पर फैंक कर वो बाथरूम की ओर  बढ़ जाता है .

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दोपहर के ढाई बजे के  आस पास, गोहल चौक पर।  यासीर को  बस स्टॉप पर खड़े  लगभग आधा घंटा हो गया था. रेहान ज्यादातर समय पर ही पहुँचता था, लेकिन आज उसे देरी हो रही थी। यासीर ने भी फोन करना मुनासिब नहीं समझा।  रेहान अपनी मर्जी का मालिक था।  उसे ज्यादा खोदने पर डर था की वो आये ही ना. 5-6 मिनट बाद रेहान आता दिखा। दूर से पहचान में ही नहीं आ रहा था।  आज अपने जन्मदिन वाले दिन भी उसने अपनी हालत बेहतर करना ठीक नहीं समझा।

बाल लंबे बिखरे हुए से थे। दाढ़ी बढ़ी हुई थी।  कपडे भी बिलकुल साधारण से।  कोई शायद ही कह सकता था आज इसका जन्मदिन है।

"यार ये क्या हाल बनाया हुआ है?", रेहान करीब पहुंचा तो यासीर तुनक पड़ा।

"क्या हुआ ?"

"आज के दिन तो कुछ हालत ठीक कर लेते। "

"क्यों आज के दिन ऐसा क्या है?", रेहान ने चिढकर कहा .

"यार तुम... रहने दो। "

दोनों चुप हो जाते हैं।  दोनों को पता था इससे ज्यादा कुछ बोलेंगे तो शायद लड़ाई हो जाए।  बस स्टॉप के दूसरी ओर एक छोटा लड़का अपनी माँ के साथ खेल रहा था।  दोपहर का समय था , तो भीड़ कम ही थी।

यासीर ने चुप्पी तोड़ी,  "अच्छा ये बताओ कहाँ चलना है फिर आज ? "

"कहीं भी . ", रेहान के मदद करने का कोई मन नहीं था।

"मेरा मतलब कोई फिल्म देखने चलें, या कहीं घूमना है? "

"कहीं भी ले चलो, जहाँ थोड़ा सुकून मिल सके बस। "

"यार तुम्हे हुआ क्या है, क्यों  अपने आप को इतनी तकलीफ दे रहे हो ?"

रेहान बिफर पड़ा, "मुझे खुद नहीं पता मुझे क्या हो गया है, और कबसे।  बस रोज उठता हूँ तो यही अफ़सोस होता है की आज बचा ही क्यों।  कुछ ना कुछ बुरा दिमाग में चलता ही रहता है। जितना भी कोशिश करो मैं बाहर निकल ही नहीं पा रहा इस दलदल से।  मुझे बचा लो यासीर, मुझे बचा लो ".

यासीर रेहान के कांधे पर हाथ रखता है तो रेहान यासीर से लिपट जाता है।  शायद रेहान को इसी की जरूरत थी, एक काँधे की। बहुत तेज तेज साँसे ले रहा था।  यासीर कुछ नहीं कहता, उसके पास कुछ कहने को था भी नहीं . वो खुद नहीं समझ पा रहा था की एक हँसता खेलता इंसान अपने आप कैसे अपनी ही बनाई गर्त में गिरता जा रहा था।

थोड़ी देर बाद रेहान अलग हुआ, तो वो कुछ शांत था।  "आ बैठ", यासीर रेहान को बस स्टॉप की बेंच पर बैठाता है, और खुद उसके बगल में बैठ जाता है।

दोनों दोस्त फिर चुप हो जाते हैं . शायद आज चुप्पी से ही बातचीत होनी थी ...

******


रेहान का फोन फिर बजा।  वो फोन जेब से निकालता है और बड़े आराम से उसकी बैटरी निकालकर अलग कर देता है।  फिर फोन और बैटरी अलग अलग जेबों में डाल लेता है।  यासीर सब देख रहा था, मगर वो चुप ही रहा।

"कितना टाइम हो रहा है यासीर".

"3 बजकर 12 मिनट"

"अच्छा"

"घरवालों से बात हुई तुम्हारी ? "

"हाँ हुई थी सुबह थोड़ी देर . "

"क्या बोले ? "

"वही रोज की कहानी। घर वापस आ जा। क्यों वहाँ पडा हुआ है।  यहीं कोई नौकरी ढूंढ ले। "

"फिर तुमने  क्या कहा ? "

" कुछ नहीं।  आज के दिन लड़ाई करने उन्हें तकलीफ नहीं देना चाहता था। "

"यार मुझे लगता है, तुम  किसी बात को लेके डिप्रेस्ड हो ।  शायद तुम्हे  पता है , शायद नहीं पता।  लेकिन तुम्हे  डॉक्टर को ..."

"मैं पागल नहीं हूँ, मैं किसी डॉक्टर को नहीं दिखाऊंगा", रेहान ने बात काटी।

"यार साइकियाट्रिस्ट को दिखाने का मतलब ये नहीं की तुम  पागल हो  . वो तो ... "

"बेटा कुछ पैसे दे दो ", इस बार किसी और आवाज ने यासीर की बात काटी।

सामने एक बुढिया खड़ी थी। सफ़ेद बाल, स्लेटी मटमैली साड़ी, छोटा कद, चेहरे पर झुरियां, और हाथ में कटोरा।

"जाओ अम्मा, कहीं और जाकर मांगो ", रेहान झल्लाया ...

"दे दो बेटा पैसे, मुझे बहुत जरूरत है। "

"अरे तुम्हे सुनाई नहीं देता क्या?", रेहान तेज आवाज में चिल्लाया तो बुढिया एक कदम पीछे हट गई।

यासीर रेहान का हाथ पकड़ लेता है, "तुम चुप बैठो एक मिनट।  अम्मा ये लो एक रूपये, अब जाओ", यासीर एक रूपये का सिक्का बुढिया के कटोरे में उछाल देता है।

पर बुढिया हिलती नहीं, "अब क्या हुआ अम्मा? ", यासीर ने पूछा. रेहान नीचे की ओर देख रहा था।  शायद उसे पता ही नहीं था की बुढिया अभी भी वहीँ खड़ी थी।

"बेटा हो सके तो कम से कम 10 रूपये का नोट दे दो। "

"देख रहा है यासीर, आजकल तो बुढियाओं के भी भाव बढ़ गए हैं, 1 रूपये में काम ही नहीं चलता अब किसी का ", रेहान ने चिढकर कहा.

"मुझे अपने लिए नहीं, अपनी पोती के लिए चाहिए बेटा।  खुद कुछ भी खा लूं, लेकिन उसे अच्छा खिलाना चाहती हूँ बस".

"क्यों तुम्हे क्यों चाहिए अपनी पोती के लिए, उसके  माँ-बाप मर गए हैं क्या? "

बुढिया का मुंह बन गया।  कुछ देर चुप रहकर बोली, "नहीं, मरे तो नहीं हैं, लेकिन ... "

"अरे जाओ जाओ अम्मा, पता है तुम लोगों का।  अभी शाम को यहीं कहीं गांजा भरती हुई मिलोगी।"

"चुप रहो यार रेहान", अपने बटुए से 50 रुपये का नोट निकलकर यासीर बुढिया के कटोरे में डाल देता है . "आज मेरे दोस्त का जन्मदिन है अम्मा. ये तुम 10 नहीं 50 रूपये रखो! "

रेहान यासीर को आँखे दिखाता है लेकिन यासीर ध्यान नहीं देता.

"ओह .. जन्मदिन मुबारक हो बेटा।  भगवान तुम्हे दुनियाभर की खुशियाँ दे।  जीते रहो... ", बुढिया आगे बढ़कर रेहान के सर पर हाथ रखती है, लेकिन रेहान हाथ झटक देता है.

"जाओ बुढिया, अब तो तुम्हारी चांदी हो गई। कहीं जाकर चिलम भरो।  ऐश करो। "

"नहीं बेटा, सच कहती हूँ।  ये ... ", बुढिया आगे कुछ नहीं कहती। कटोरा लेकर आगे बढ़ जाती है।

रेहान बुढिया को धीरे धीरे सड़क पार करते देखता रहता है. सड़क के दूसरी ओर के बस स्टॉप पर खड़े लोगों के पास जाकर बुढिया पैसे मांगने लगती है. एक-दो को छोड़कर लगभग सभी उसे दुत्कार देते हैं .

हताश हो बुढिया कटोरा लेकर बस स्टॉप से थोडा ही आगे बढती है की एक साइकिल वाले से उसे धक्का लग जाता है।  बुढिया अपने आप को संभाल नहीं पाती, और सड़क के बीच में आ जाती है।  सामने आ रही तेज रफ़्तार ट्रोली उसे टक्कर मारते हुई निकल जाती है।

ये सब इतनी तेज हुआ की किसी को कुछ समझ नहीं आया।  रेहान ने सब देखा लेकिन वो बुत बना बैठा था .

"रेहान, रेहान !!" ,  यासीर उसे चिल्ला चिल्ला कर बुला रहा था।

रेहान को एक दम से होश आया, "भाग यासीर, भाग...   भााग  ".

दोनों बुढिया की ओर  भागते हैं, "यासीर अम्मा, यासीर अम्मा... क्या हुआ उन्हें. ", रेहान भागता हुआ चिल्ला रहा था।

जब तक वो सड़क की दूसरी ओर  पहुंचे, दो चार लोग बुढिया के चरों ओर जमा हो चुके थे। लेकिन किसी ने उसे हाथ नहीं लगाया। बुढिया का पैर बुरी तरह कुचला हुआ था, और सर से बहुत तेज खून बह रहा था।

"यासीर देख ना, देख  ना क्या हुआ इन्हें। अम्मा, अम्मा !!", रेहान बुढिया का सर अपने हाथ में रखकर चिल्लाने लगा।  उसके सारे कपडे बुढिया के खून से भीगे जा रहे थे।

यासीर को कुछ समझ नहीं आ रहा था। क्या बुढिया जिंदा थी या मर गई।  इसे अस्पताल लेके जाए या यहीं छोड़ दें।

"एम्बुलेंस, हाँ , हाँ एम्बुलेंस.. ", रेहान जेब से मोबाइल निकालता है। लेकिन फोन बंद था।  उसे होश ही नहीं था की फोन की बेटरी दूसरी जेब में थी।

"यासीर, फोन नहीं चल रहा मेरा।  फोन।  तू ... तू मिला।  मिला।  एम्बुलेंस। एम्बुलेंस।"

******


बुढिया स्ट्रेचर पर लेटी हुई थी।  एक नर्स पैरों पर पट्टी करने की कोशिश कर रही थी।  रेहान पास में बैठा सर का खून रोक रहा था,पर नाकाम था।  उसका पूरा शरीर बुढिया के खून से रंग गया था। यासीर एम्बुलेंस में आगे बैठा हुआ था।

"अम्मा, अम्मा.. ", रेहान रह रहकर बुढिया को अवाज लगाता लेकिन बुढिया बेहोश सी थी।

"भैया और कितना टाइम लगेगा हॉस्पिटल को? ", रेहान ड्राइवर पर चिल्लाता है।

"सर ट्रेफिक बहुत है आगे , टाइम लगेगा अभी 10 मिनट और कम से कम ".

"सवा चार हो रहे हैं. आधा घंटा पहले एक्सीडेंट हुआ था।  ये मर जायेंगी ऐसे।  तेज चलो, तेज .. ".

"भाई साहब मैं कोशिश कर रहा हूँ, आपके चिल्लाने से कुछ नहीं होगा ".

"बेटा... ", रेहान इससे पहले कुछ और कह  पाता, बुढिया के मुह से बहुत धीमे आवाज निकलती है .

"अम्मा, अम्मा।  नर्स देखो , देखो ये कुछ बोल रही हैं".

नर्स बुढिया की ओर बढ़ने की कोशिश करती है, लेकिन बुढिया उँगलियों का इशारा कर उसे रोक देती  है।

"बेटा मौसम. मौसम को बचा लो बेटा".

"अम्मा , हम बस पहुँचने वाले हैं हॉस्पिटल।  तुम ठीक हो जाओगी।  तुम्हे कुछ नहीं होगा अम्मा।  तुम्हे ... "

"बेटा मैं झूठ नहीं बोल रही थी बेटा।  मौसम ... "

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शाम के 7 बजने को थे।  रेहान को बता दिया गया था की सर और पैर से बहुत ज्यादा खून बह जाने के कारण बुढिया को बचाया नहीं जा सका।  पर रेहान के चेहरे पर कोई शिकन  नहीं थी।

हॉस्पिटल की गेलेरी में बैठ कर वो सोच में मग्न था।  यहाँ वो अपनी ही दुनिया में फंसा था। उसे लगता था की सबसे जायदा तकलीफ उसे ही है दुनिया में, सबसे ज्यादा बेसहारा, अकेला वो ही है। कितना गलत था वो।  जिंदगी सिर्फ अपने लिए ही तो नहीं जी जाती।  अपनी जिंदगी पर अपनों का भी उतना ही हक होता है, जितना खुद का।  मगर रेहान तो सभी अपनों को अपने से दूर करने में उतारू था। उसे अपने आप से नफरत सी होने लगी थी।

"रेहान, रेहान ", यासीर ने पास जाकर रेहान को झकझोरा।

"रेहान, मैंने पुलिस को फोन कर दिया है। वो लोग अभी थोड़ी देर में पहुँच जायेंगे।  थोड़ी बहुत पूछताछ के बाद हम जा सकते हैं।  ".

इतने में दो वार्ड-बोयस सामने के कमरे से स्ट्रेचर पर बुढिया का शरीर खींच कर बाहर निकालते हैं .

रेहान एक दम खड़ा होकर उन्हें रोक लेता है।  सर से चादर उठाता  है तो बुढिया पहचान में ही नहीं आती . पूरा सर पट्टियों से बंधा था, चेहरा  पीला पड़ गया था। रेहान अपनी उँगलियों को धीरे से बुढिया के चेहरे तक  ले जाता है।

चेहरे की झुरियों पर हाथ फिरते हुए उसके हाथ पत्ते की तरह कांप रहे थे।  दिमाग में बुढिया की कही आखिरी बातें गूँज रही थी...

*******


"बेटा मैं झूठ नहीं बोल रही थी बेटा।  मौसम मेरी पोती है।  उसके माँ-बाप ने उसे पैदा होते ही, मरने के लिए कूड़े में फिंकवा दिया था।  उन्हें तो लड़का चाहिए था, जो उनके बुढापे का सहारा बने , उनकी सेवा करे। लेकिन ये मनहूस पैदा हो गई।  

वो तो इसे अपने हाथो से गला घोंट कर मार देना चाहते थे।  पर.. पर मैं बचा लाई  उन्हें झूठ बोल कर।  मरते मरते बचाया उसे बस। जैसे तैसे रूखा सूखा खिलाकर पाला।  उन लोगों ने मुझसे भी धीरे धीरे वास्ता तोड़ लिया। 

शरीर में जान नहीं है तो कोई काम नहीं देता, इसलिए भीख मांग कर काम चलाती हूँ।  8 साल हो गए, एक बार भी उसके माँ-बाप ने सुध नहीं ली लड़की की। बहुत प्यारी बच्ची है मौसम बेटा, मैं उसे स्कूल भी भेजती हूँ।  पढ़ने में बहुत तेज है. कहती है बड़ी होके डॉक्टर बनूँगी। 

बेटा.. मैं नहीं बच पाऊंगा अब, मेरे बिना वो मर जायेगी।  हो सकते तो उसे ... किसी अनाथालय में ... छोड़ आना।  कहना दादी.. दादी कुछ दिन में ले जायेगी।  धीरे धीरे भूल जायेगी मुझे। 

वो तुम्हे सोम्बजार के पीछे की झोपड पट्टी में मिल जायेगी। किसी से भी पूछ लेना मौसम कहाँ रहती है। 

बेटा, करोगे ना बेटा? "

रेहान हाँ मे सर हिलाता है, "जीते रहो बेटा, जीते रहो।  ". बुढिया हाथ ऊपर उठाती है तो रेहान सर आगे कर देता है। 

"बेटा मौसम को बचा लेना. जन्मदिन .. जन्मदिन मुबारक हो बेटा। "  

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